परिचय

पार्श्वभूमि


  • श्रेयस्कर विद्यातीर्थ के प्रारंभ से पूर्व २०१४ में, राजकोट के ८-१० अभिभावकों की बैठक में,अपने बच्चों को भारतीय शिक्षा मिले, इसलिए क्या कर सकते है, इस पर विचार विमर्श हुआ। अपने बच्चों को आध्यात्मिक एवं भौतिक शिक्षा मिले, इस उद्देश्य से बालमंदिर प्रारंभ करना तय हुआ। २०१४ से इसका प्रारंभ ४ बच्चों से हुआ, जिनकी आयु ५ वर्ष की थी। धीरे धीरे यह संख्या १६ तक पहुँची।
     
  • यह करते करते पूर्ण समय का निवासी शिक्षा का विचार अभिभावको में दृढ हुआ। इसके साथ ही, शिक्षा को भारतीय बनाने और भारतीय शिक्षा के प्रतिमान के लक्ष्य के साथ श्रेयस्कर विद्यातीर्थ – गुरुकुल का प्रारंभ हुआ।
     


श्रेयस्कर विद्यातीर्थ क्या है ?


  • श्रेयस्कर विद्यातीर्थ भारतीय शिक्षा के विचार पर चलनेवाला गुरुकुल है। यह गुरूकुल श्रेयस्कर विद्यापीठ का एक अंग हैं। विद्यापीठ का कार्य जीवन के भारतीय प्रतिमान को प्रस्थापित करना हैं। इस प्रतिस्थापना का पहला चरण शिक्षा क्षेत्र को भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलाना हैं। इसलिए इस गुरुकुल की स्थापना हुई हैं।
     
  • किन्तु केवल शिक्षा में बदलाव करने से जीवन भारतीय नहीं बनेगा। शिक्षा के साथ सामाजिक, आर्थिक और शासन व्यवस्था को भी भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलना होगा। इसलिए जीवन से संलग्न सभी व्यवस्था भी भारतीय बनें, यह अनिवार्य है। शिक्षा के साथ इन तंत्र के भारतीय ज्ञानपक्ष प्रस्थापित करने का दायित्व विद्यापीठ ने उठाया हैं।
     


उद्देश्य


  • श्रेयस्कर विद्यातीर्थ के साथ जूडे प्रत्येक व्यक्ति (विद्यार्थी, आचार्य, शिक्षक, सेवाभावी सज्जन) की जीवनयात्रा के परम लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु पर्याप्त क्षमता और सामर्थ्य विकसीत करना इस गुरुकुल का उद्देश्य हैं।
     
  • यह धर्म के आचरण से होगा।
    यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि सः धर्मः।
     
    • जिसमें व्यक्ति का अभ्युदय और निःश्रेयस दोनो है, वही धर्म हैं।
       
    • अभ्युदय – भौतिक विद्या, ऩिःश्रेयस – आध्यात्मिक विद्या
       
    • धर्म के अनुपालन के लिए भौतिक और आध्यात्मिक विद्या प्राप्त करनी होगी। यह दोनों विद्या के साथ ही व्यक्ति परम लक्ष्य प्राप्त कर सकता हैं।
       


क्रियान्वयन


  • शैक्षिक पक्ष
    • श्रेयस्कर विद्यातीर्थ ने जो उद्देश्य तय किया है, उसके अनुरूप शिक्षा पद्धति, पाठ्यक्रम, बौद्धिक खंड और शैक्षिक गतिविधियाँ का स्वरुप होगा। शैक्षिक व्यवस्था बालक की आयु, क्षमता और स्वभाव के अनुरुप की गई हैं। इसको कोई ढाँचे में नहीं रखा हैं। अपितु प्रत्येक बालक के विकास को ध्यान में रखकर लचीलेपन में शैक्षिक व्यवस्था की गई हैं।
       
    • गुरुकुल की शिक्षा व्यवस्था पूर्णतः स्वायत्त हैं।
       
  • व्यवस्था पक्ष
    • गुरुकुल की अधिकतर व्यवस्था आचार्य और बालक देखते हैं। वही इसका सही नियमन और नियंत्रण करते हैं।
       
    • इन दोनों को केन्द्र में रखकर गुरुकुल से जूडे सेवाभावी कार्यकर्ता गण व्यवस्था काम संभालते हैं। आवश्यक होने पर पेशेवर लोगों का भी समावेश किया जाता हैं।
       
    • गुरुकुल की अधिकतर व्यवस्था सरल, सादगीपूर्ण, और स्वनिर्भर हैं, इसलिए आर्थिक व्यय कम होता हैं। गुरुकुल से जूडे अभिभावक, कार्यकर्ता, हितेच्छु, श्रेष्ठीगण और समाज के दान पर आर्थिक निर्वाह चलता हैं। आर्थीक व्यवस्था संपूर्णतः समाजपोषित हैं।
       

आह्वान

सर्वे कर्मवशा वयम् । - हमारे पूर्वजो, ऋषियों ने इस भारत भूमि को ज्ञान के प्रकाश में निःस्वार्थ कर्म से सिंचा है, जिसके कारण हम आज भी इतने विपरीत समय में भी अपने ' स्व ' को कुछ संभाले हुए हैं। हम सब के लिए यह आह्वान है कि हम इस ज्ञानधारा के आधार पर श्रेष्ठ समाज बनायें।

  • स्वयं अध्ययन करें, अपने व्यवसाय, कौशल, रुची के विषयानुसार गृहस्थ होते हुए या वानप्रस्थ में ऐसे ही कोई गुरुकुल, विद्यापीठ से जूडकर सेवा दें।
  • अपने बच्चों को भारतीय शिक्षा के आधार पर चलनेवाले विद्याकेन्द्र में शिक्षा दें।
  • लोको में भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा बढें, इस हेतु कार्यक्रमों का आयोजन करें।
  • भारतीय शिक्षा को उजागर करने के लिए प्रयासरत विद्याकेन्द्रों को आर्थीक सहयोग करें।
  • यथासंभव, स्वयं का और परिवार का जीवन भारतीय प्रतिमान के अनुसार बने, उसके लिए प्रयत्न करें।
  • स्वयं और अन्य इच्छुक लोगो के साथ मिलकर भारतीय शिक्षा की प्रतिस्थापना हेतु विद्याकेन्द्र प्रारंभ करें।