• श्रेयस्कर विद्यातीर्थ क्या है ?

    श्रेयस्कर विद्यातीर्थ भारतीय शिक्षा के विचार पर चलनेवाला गुरुकुल है।

  • शैक्षिक

    यह व्यवस्था बालक की आयु, क्षमता और स्वभाव के अनुरुप शिक्षा की रचना की गई हैं।

  • व्यवस्था

    गुरुकुल की अधिकतर व्यवस्था सरल, सादगीपूर्ण और स्वनिर्भर हैं, इसलिए आर्थिक व्यय कम होता हैं

  • जानकारी

    अधिक जानकारी के लिए ९७२३२७०६३६ – ९९२४९९१९९९ पर संपर्क कर सकते हैं।

भारतीय शिक्षा की प्रतिस्थापना

शिक्षा केवल पैसे कमाने, प्रतिष्ठा प्राप्त करने हेतु नहीं होती, आज केवल पैसे कमाने की होड में, शिक्षा को भी बाजार बना दिया हैं। इसे बदलने की आवश्यकता हैं।

किसी भी राष्ट्र का भविष्य कैसा होगा ?, वहाँ संशाधन से नहीं, वहाँ के लोगों से तय होगा। लोग कैसे बनेंगे, वह विद्यालय के कक्षाकक्ष में तय होता हैं। इसलिए शिक्षा का महत्व केवल पैसे कमाने तक सिमित नहीं हैं। यही कारण है कि अंग्रेजोने भारतीय शिक्षातंत्र का विनाश करके पाश्चात्य विचार के आधार पर चलनेवाला शिक्षातंत्र स्थापित किया। स्वाधीनता के बाद, काले अंग्रेजोने शिक्षातंत्र में कोई बदलाव नहीं किया, क्योंकि लोकतंत्र में सरकार शिक्षा को स्वतंत्र नहीं करना चाहती । भारत में शिक्षा तपस्वी, निःस्वार्थ, ज्ञानपूजक गुरुओं के हाथ में थी। शिक्षा बच्चें का जीवन बनाती है। जीवन क्या है, इसे समझना, उसके आधार पर स्वयं को तैयार करना, शिक्षा का उद्देश्य हैं।

शिक्षा की पुनःप्रतिष्ठा, व्यक्ति की, समाज की और अंततः राष्ट्र की पुनःप्रतिष्ठा हैं।

श्रेयस्कर विद्यातीर्थ – गुरुकुल ऐसा ही एक प्रयास हैं।

साप्ताहिक संदेश

साप्ताहिक संदेश

वरवधू चयन और विवाह संस्कार
आज हम विवाह करते हैं या मेरेज/वेडींग?
दम्पतियों में डीवोर्स के बढ़ते दर का क्या कारण है?
क्या विवाह केवल मोज-शोख के लिए होता है?
क्या विवाह में रूप, शिक्षा और धन ही चयन के एकमात्र मानदंड हैं?
वर-वधू चयन के शास्त्रीय नियम क्या हैं?
विवाह को संस्कार क्यों कहा जाता है?
यदि आपके मन में ऐसे विचार और प्रश्न उठते हैं और इस विषय को जानने के लिए उत्सुक हैं, तो आप अवश्य इस वर्ग में शामिल हो सकते हैं। गृहस्थ धर्म का प्रारंभ विवाह संस्कार से होता है। और इसका पहला चरण है - योग्य वर या वधू का चयन। वर्तमान समय में वर-वधू चयन और विवाह संस्कार के मापदंडों की समझ के अभाव में, वैवाहिक जीवन में क्लेश, निर्माल्य संतति और पारिवारिक कलह जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विवाह की अवधारणा को सही अर्थों में समझकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के प्रयास में, इस एक दिवसीय कक्षा का आयोजन किया गया है। वर्तमान में यह कक्षा केवल युवतियों के लिए है। उनके माता-पिता भी इस कक्षा में शामिल हो सकते हैं।
दिनांक: भाद्रपद सुद पूर्णिमा, विक्रम सं. २०८१, रविवार (०७ सितम्बर,२०२५)
समय: सुबह ९:०० बजे से शाम ५:३० बजे तक
स्थान: श्रेयस्कर विद्यातीर्थ(गुरुकुल), गाँव-शेमला, तहसील गोंडल, राजकोट, गुजरात
विशेष सूचना
- यह कक्षा निःशुल्क होगी, लेकिन पंजीकरण अनिवार्य है।
- कक्षा में समय पर उपस्थित होना आवश्यक है।
- केवल पंजीकरण कराने वालों को ही प्रवेश की अनुमति होगी।
- कार्यक्रम स्थल पर दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जाएगी।
- बाहरगाँव से आनेवाले प्रतिभागियों के लिए रात्रि आवास की व्यवस्था है।
https://forms.gle/R48pm3vWVmLkgrtL6
संपर्क :
९७२३२ ७०६३६ / ९९२४९ ९१९९९
लोकेशन :
https://maps.app.goo.gl/CLzXR2fQXoxD5thT7

साप्ताहिक गतिविधि

साप्ताहिक गतिविधि

दि.२० जूलाई, २०२५ को श्रेयस्कर विद्यातीर्थ ने पोरबंदर में बालमंदिर(५ वर्ष की आयु के बच्चो के लिए) प्रारंभ करने हेतु माता-पिता की बैठक आयोजित की थी। जिसमें श्री परागभाईने गुरुकुल के विषय में जानकारी दी।

आगामी कार्यक्रम

आगामी कार्यक्रम

दि. ०६-०८-२०२५ -- भारतीय शिक्षण की अवधारणा - गाँव - गोमटा

दि. ०७-०९-२०२५ - रविवार - वरवधूचयन और विवाह संस्कार (सफल दाम्पत्य जिवन के लिए चिंतन एवं मार्गदर्शन)
समय:- सुबर ९-०० से शाम ०५-३० बजे तक,
स्थानः- श्रेयस्कर विद्यातीर्थ, गुरुकुल, गाँव-शेमळा, राजकोट, गुजरात
पंजीकरण कडी:-https://forms.gle/R48pm3vWVmLkgrtL6

हमारा वीडियो देखें

आह्वान

सर्वे कर्मवशा वयम् । - हमारे पूर्वजो, ऋषियों ने इस भारत भूमि को ज्ञान के प्रकाश में निःस्वार्थ कर्म से सिंचा है, जिसके कारण हम आज भी इतने विपरीत समय में भी अपने ' स्व ' को कुछ संभाले हुए हैं। हम सब के लिए यह आह्वान है कि हम इस ज्ञानधारा के आधार पर श्रेष्ठ समाज बनायें।

  • स्वयं अध्ययन करें, अपने व्यवसाय, कौशल, रुची के विषयानुसार गृहस्थ होते हुए या वानप्रस्थ में ऐसे ही कोई गुरुकुल, विद्यापीठ से जूडकर सेवा दें।
  • अपने बच्चों को भारतीय शिक्षा के आधार पर चलनेवाले विद्याकेन्द्र में शिक्षा दें।
  • लोको में भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा बढें, इस हेतु कार्यक्रमों का आयोजन करें।
  • भारतीय शिक्षा को उजागर करने के लिए प्रयासरत विद्याकेन्द्रों को आर्थीक सहयोग करें।
  • यथासंभव, स्वयं का और परिवार का जीवन भारतीय प्रतिमान के अनुसार बने, उसके लिए प्रयत्न करें।
  • स्वयं और अन्य इच्छुक लोगो के साथ मिलकर भारतीय शिक्षा की प्रतिस्थापना हेतु विद्याकेन्द्र प्रारंभ करें।