श्रेयस्कर विद्यातीर्थ भारतीय शिक्षा के विचार पर चलनेवाला गुरुकुल है।
यह व्यवस्था बालक की आयु, क्षमता और स्वभाव के अनुरुप शिक्षा की रचना की गई हैं।
गुरुकुल की अधिकतर व्यवस्था सरल, सादगीपूर्ण, और स्वनिर्भर हैं, इसलिए आर्थिक व्यय कम होता हैं
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शिक्षा केवल पैसे कमाने, प्रतिष्ठा प्राप्त करने हेतु नहीं होती, आज केवल पैसे कमाने की होड में, शिक्षा को भी बाजार बना दिया हैं। इसे बदलने की आवश्यकता हैं।
किसी भी राष्ट्र का भविष्य कैसा होगा ?, वहाँ संशाधन से नहीं, वहाँ के लोगों से तय होगा। लोग कैसे बनेंगे, वह विद्यालय के कक्षाकक्ष में तय होता हैं। इसलिए शिक्षा का महत्व केवल पैसे कमाने तक सिमित नहीं हैं। यही कारण है कि अंग्रेजोने भारतीय शिक्षातंत्र का विनाश करके पाश्चात्य विचार के आधार पर चलनेवाला शिक्षातंत्र स्थापित किया। स्वाधीनता के बाद, काले अंग्रेजोने शिक्षातंत्र में कोई बदलाव नहीं किया, क्योंकि लोकतंत्र में सरकार शिक्षा को स्वतंत्र नहीं करना चाहती । भारत में शिक्षा तपस्वी, निःस्वार्थ, ज्ञानपूजक गुरुओं के हाथ में थी। शिक्षा बच्चें का जीवन बनाती है। जीवन क्या है, इसे समझना, उसके आधार पर स्वयं को तैयार करना, शिक्षा का उद्देश्य हैं।
शिक्षा की पुनःप्रतिष्ठा, व्यक्ति की, समाज की और अंततः राष्ट्र की पुनःप्रतिष्ठा हैं।
श्रेयस्कर विद्यातीर्थ – गुरुकुल ऐसा ही एक प्रयास हैं।
जातक कथाओं में एक प्रसिद्ध चिकित्सक, जीवक, अपने गुरु आत्रेय के अधीन एक लम्बी शिष्यता के बाद अपनी अंतिम परीक्षा दे रहे थे।
प्रायोगिक कार्य के लिए, अत्रेय ने अपने शिष्यों को यह कार्य दिया: गुरुकुल के आस-पास के घने जंगल वाले सरलाका पहाड़ियों से वे सभी पौधे, पशु उत्पाद और खनिज पदार्थ लाएं जिनका कोई औषधीय महत्व नहीं है। उन्हें कार्य पूरा करने और गुरु की जांच के लिए उत्तर प्रस्तुत करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था।
सभी शिष्य खुदाई, उखाड़ना, छाल निकालना, काटना, छीलना, भूसी निकालना, सफाई करना, सुखाना आदि के लिए आवश्यक उपकरण लेकर पहाड़ियों की ओर निकल पड़े और जंगल की विशालता में गायब हो गए।
एक सप्ताह बाद, एक-एक करके वे सभी गुरुकुल में वापस आ गए। कुछ शिष्यों ने गाड़ियों में भरकर पत्तियाँ, जड़ें, फूल, पराग, छाल, बीज, रेजिन, जानवरों के स्राव और कच्चे खनिज पदार्थ इकट्ठा किए थे, जो उनके अनुसार औषधीय गुणों से बिलकुल रहित थे।
कुछ लोगों के पास टोकरियाँ भरकर ऐसी सामग्री थी। जीवक को छोड़कर पूरी कक्षा में कम से कम मुट्ठी भर सामग्री लाई गई। केवल जीवक ही सरलाका पहाड़ियों से खाली हाथ वापस आया।
जीवक के सहपाठियों को जिज्ञासा हुई: क्या जीवक ने परीक्षा छोड़ दी है? वे सभी आत्रेय की ओर मुड़े, जो जीवक से प्रश्न पूछने के लिए खड़ा हुआ था।
गुरु ने पूछा, "जीवक, तुम्हारे हाथ खाली कैसे हैं? क्या तुमने परीक्षा न देने का निर्णय लिया या फिर तुम्हें कोई ऐसी चीज़ नहीं मिली जो औषधीय न हो?"
जीवक ने उत्तर दिया, "पूज्य अत्रेय, मैंने घूम-घूमकर यह कार्य किया। मैंने आपके साथ अपने लंबे अध्ययन के दौरान इसी प्रकार की खोज और प्रयोग किए हैं। मैंने आज पाया कि सरलाका में और वास्तव में अन्यत्र भी सब कुछ - प्रकृति में सब कुछ - औषधीय शक्ति से भरा हुआ है। न केवल पौधे, पशु और खनिज, बल्कि हवा, सूर्य का प्रकाश, पक्षियों का गीत, फूलों की गंध, नदी की ध्वनि और बादलों की छाया भी उपचार करती है। कुछ मनुष्यों को ठीक करते हैं, कुछ पशुओं को। कुछ शारीरिक बीमारियों को ठीक करते हैं और कुछ मानसिक बीमारियों को ठीक करते हैं। उपचार की सर्वव्यापकता को मैंने आज खोजा है, जैसा कि मैंने पहले भी किया था। कृपया इस उत्तर के आधार पर मेरे कार्य का मूल्यांकन करें।"
कहानी का बाकी हिस्सा आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। अत्रेय को निश्चित रूप से हमेशा से ही इसका उत्तर पता था, लेकिन वह अपने शिष्यों को व्यावहारिक और व्यक्तिगत रूप से परखना चाहता था, और जीवक ने प्रभावी ढंग से परीक्षा पास की। बाद के जीवन में, जीवक भारतीय सम्राट अशोक के पिता राजा बिंदुसार से लेकर मगध राज्य के बीमार जानवरों तक सभी का सबसे प्रभावशाली और दयालु उपचारक बन गया।
अमंत्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमानौषधम्।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ॥
बिना मन्त्रशक्ति के कोई अक्षर नहीं ,बिना औषधि गुण के कोई पौधा नहीं; बिना गुण के कोई व्यक्ति नहीं;परन्तु ऐसे व्यक्ति दुर्लभ हैं,जो हर वस्तु में गुणों को देख उन्हें उपयोग में ला सके।
यह दुर्लभ व्यक्ति ही गुरु हैं, जो शिष्यों के विशेष गुणो को परख कर उसे विकसीत करें। न कि सभी को एक ही समान की शिक्षा-दीक्षा दें।
दि.०२ जून, २०२४ को श्रेयस्कर विद्यातीर्थ में नेचरल & एडवेन्चर क्लब, राजकोट से जूडे परिवार ने मुलाकात ली। गुरुकुल के श्रीधर आचार्य एवं श्री पलकभाईने गुरुकुल के विषय में जानकारी दी। शाम के भोजन के बाद बच्चों के साथ खेल का आयोजन रहा। दोनों ओर से उत्साहजनक और आनंद का वातावरण रहा।
दि. २१-०७-२०२४ -- गुरुपूर्णिमा कार्यक्रम
दि. ०६-०७-२०२४ - शनिवार - बाल संगोपन (५ वर्ष से कम आयु के बालक के विषय में माताओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम)
समय:- रात्रि ८ से १० बजे तक,
स्थानः- उमा सदन, उमा पार्क -३, भगत सिंह गार्डन मार्ग, राजकोट, गुजरात
पंजीकरण कडी:-https://forms.gle/Syd3xNQCoenBAHS57
गणेश चतुर्थी, दिवाली, नवरात्रि महोत्सव, नाटकीय अभिनय, नित्य अग्निहोत्र, प्रकृति भ्रमण, खेल, व्रत मनाना, अधिक ...